सच कहो मुखालिफत से क्यों डरते हो?
ए ईमान वालों मुशरिकों से क्यों पिचढ़तेय हो?
अरे हर शय का तोह राजिक-ओ-मालिक है इक खुदा,
तो फिर क्यों यह तेरा वोह मेरा झगडते हो?
मुश्किलों भरे सफ़र में ख़ुशी की तलाश करते हुए
हम चल तो पड़े
चलते चलते राह में आराम तलबी का जी चाहा ही,
की तभी हमें कुछ नज़र आया.
गफलतों का एक घना दरक्थ .
उसकी ग़म भरी छाओं में इत्मीनान की चादर ओढे हम अभी सोये भी न थे
की आपकी रहज़नी का शिकार हुए.
आपको हमसे हासिल हुआ भी तो क्या?
हमारी मुफलिसी!!!
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